आदर्श क्रेडिट को-ऑपरेटिव घोटाला भारत के बड़े घोटालों में शामिल किया जाता है, जिसमें तक़रीबन 20 लाख लोगों के खून पसीने की कमाई दांव पर लगी है |
देवाराम अपने पूरे परिवार के साथ खेतों में सब्ज़ी उगाते हैं, जिन्हें मंडी में बेचकर परिवार का गुज़ारा होता है. |
करीब 2 साल पहले उनके पास सोनाराम नाम के एक इन्वेस्टमेंट एडवाइजर आए. सोनाराम आदर्श क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसायटी (ACCS) के लिए काम करते हैं. उन्होंने देवाराम को समझाया कि अगर उन्हें अपनी बेटियों की शादी करनी है तो उन्हें अभी से बचत शुरू कर देनी चाहिए. देवाराम को उनकी बात ठीक लगी. उन्होंने ACCS के दैनिक बचत योजना में खाता खुलवा लिया. घर का खर्च निकालकर बाकी के पैसे वो इस खाते में जमा करवाने लगे. दो साल के भीतर पेट काटकर उन्होंने तकरीबन 2 लाख की रकम जोड़ ली. लेकिन खून-पसीना एक करके कमाया यह पैसा अब उन्हें कभी वापिस नहीं मिलेगा.
26 मई 2018 को राजस्थान पुलिस के स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप (SOG) ने बड़ी कार्रवाई करते हुए आदर्श क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसायटी घोटाले का पर्दाफाश किया. पुलिस का दावा है कि ACCS ने अपने 20 लाख निवेशकों के साथ धोखाधड़ी की है और आम जनता को कुल 14 हजार 800 करोड़ का चूना लगाया है. SOG ने सिरोही, गुरुग्राम, मुंबई, अहमदाबाद और जयपुर में छापे डालकर 11 आरोपियों को गिरफ्तार किया. गिरफ्तार आरोपियों में सिरोही नगर परिषद के पूर्व अध्यक्ष वीरेंद्र मोदी, प्रियंका मोदी, वैष्णव लोढ़ा, कमलेश चौधरी, समीर मोदी, ईश्वर सिंह,भरत वैष्णव,ललिता राजपुरोहित,विवेक पुरोहित. इस घोटाले के मास्टर माइंड कहे जाने वाले मुकेश मोदी और उनके बेटे राहुल मोदी को serious fraud investigation office(SFIO)पहले ही गिरफ्तार कर चुका है.
आदर्श को-ऑपरेटिव बैंक सिरोही |
# क्या है आदर्श क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसायटी?
इस कहानी की शुरुआत होती है 1992 में. सिरोही के एक रिटायर ग्रामसेवक जी थे. नाम था प्रकाश राज मोदी. संघ की तरफ रुझान था. सरकारी नौकरी से निवृत होने के बाद संघ के किसान मोर्चे ‘भारतीय किसान संघ’ से जुड़ गए. सिरोही जिला के संयोजक बना दिए गए. समाज में छवि ठीक थी. 1990 में भैरो सिंह शेखावत के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार बनी. दशकों सत्ता से बाहर रहे संघ परिवार ने तमाम संस्थाओं में घुसपैठ करना शुरू किया. 1992 में ‘दी सिरोही अर्बन कमर्शियल बैंक’ के चुनाव हुए. उस समय बैंक की प्रबंधन समिति में 9 सदस्यों का चुनाव होता था. ये सदस्य मिलकर इस बैंक के चेयरमैन का चुनाव करते थे. प्रकाश राज मोदी पहले बैंक की प्रबंध समिति के सदस्य चुने गए. इस चुनाव में कुल 9 में से 7 सदस्य ऐसे थे जिनका रुझान संघ या बीजेपी की तरफ था. प्रकाश राज मोदी को प्रबंध समिति का अध्यक्ष बना दिया गया. अगले पांच साल इसी प्रबंध समिति को बैंक का प्रबंधन देखना था.
साल 1994. प्रकाश राज मोदी का इंतकाल हो गया. सहकारी समिति में प्रबंध समिति चलाने के कुछ कायदे हैं. इसमें से एक नियम यह कि अगर प्रबंध समिति के किसी सदस्य का निधन हो जाता है या वो अपने पद से इस्तीफ़ा दे देता है तो उसकी जगह पर सहकारी समिति के किसी और सदस्य को प्रबंध समिति का सदस्य बना दिया जाता है. नए सिरे से चुनाव नहीं करवाए जाते. यही वो मोड़ था जिसने इस सहकारी बैंक के मुस्तकबिल को बदल दिया. प्रकाश मोदी की मौत के बाद उनके बड़े बेटे मुकेश मोदी को प्रबंध समिति का सदस्य मनोनीत किया गया और उन्हें सर्वसम्मति से प्रबंध समिति का अध्यक्ष चुन लिया गया.
मुकेश मोदी |
प्रबंध समिति का अध्यक्ष बनते ही मुकेश ने सबसे पहले बैंक का नाम बदलने की कवायद शुरू की. रिजर्व बैंक को अर्जी देकर ‘दी सिरोही अर्बन कमर्शियल बैंक’ का नाम बदलकर ‘माधव नागरिक सहकारी बैंक’ रख दिया गया. यह नाम आरएसएस के दूसरे सरसंघ चालक माधव सदाशिव गोलवलकर के नाम पर रखा गया था. मुकेश के इस एक कदम ने उन्हें आरएसएस के स्थानीय नेतृव की आंख का तारा बना दिया. यह बहुत सोचा-समझा कदम था. मुकेश खुद के लिए जरुरी राजनीतिक संरक्षण हासिल करने में कामयाब रहे. इसी राजनीतिक संरक्षण के दम पर उन्होंने अपने भाई वीरेंद्र मोदी को सिरोही नगर पालिका का अध्यक्ष भी बनवाया.
साल 1999. मुकेश ‘माधव नागरिक सहकारिता बैंक’ की प्रबंध समिति से हट चुके थे. उन्होंने अपनी जगह अपने भाई वीरेंद्र मोदी को प्रबंध समिति का अध्यक्ष बनवा दिया. 1999 में मुकेश ने ‘क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसायटी’ खोली. नाम रखा ‘आदर्श क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसायटी’. यह सोसायटी मुख्य रूप से लोन देने का काम करती थी. लेकिन लोन देने के लिए इसके पास पैसा कहां से आता? दरअसल यह सहकारी समिति अपने सदस्य बनाती थी. ये सदस्य समिति के शेयर होल्डर होते थे. ये समिति में अपना कुछ पैसा निवेश करते. सोसायटी इस पैसे को सूद पर देती है. सूद के तौर पर जो मुनाफा आता है वो सोसायटी के शेयर होल्डर्स में बांट दिया जाता है.
मुकेश मोदी का भाई वीरेंदर मोदी |
1999 में सूबे की सत्ता बदल चुकी थी लेकिन मुकेश मोदी का जलवा जस-का-तस कायम था. अशोक गहलोत के नेतृत्व में सूबे में कांग्रेस की सरकार चल रही थी और परसादी लाल मीणा सहकारिता मंत्री थे. मुकेश मोदी ने माधव नागरिक बैंक को सहकारिता विभाग से उन्मुक्त करवा लिया. माने 1999 के बाद माधव नागरिक बैंक में सहकारिता विभाग का कोई सीधा हस्तक्षेप नहीं रहा.
साल 2002. केंद्र सरकार ने एक से ज्यादा राज्यों में चल रहे सहकारी बैंको के लिए बने कानूनों में बदलाव किया. इसे नाम दिया गया, ‘Multi State Cooperative Society Act-2002’. अब तक ‘माधव नागरिक सहकारी बैंक’ पर मोदी परिवार का एकाधिकार हो चुका था. 2002 में आए नए एक्ट के तहत माधव नागरिक सहकारी बैंक का नए सिरे से रजिस्टर करवाया गया. इस बार बैंक का नाम बदलकर ‘आदर्श को-ऑपरेटिव बैंक’ करवा दिया गया. यह दांव बड़े काम का साबित हुआ. आने वाले समय आदर्श क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसायटी को आदर्श को-ऑपरेटिव बैंक की एक शाखा की तरह आम लोगों के सामने पेश किया जाने लगा. जबकि तकनिकी तौर पर दोनों को कोई संबंध नहीं था. सिवाए इसके कि दोनों जगह पर मोदी परिवार काबिज था.
राहुल मोदी |
आदर्श क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसाइटी की एक नई ब्रांच का फ़ीता काटते राहुल मोदी |
#पहली रपट
साल 2001. आदर्श क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसायटी खुलने के महज दो साल के भीतर मोदी परिवार से जुड़ी पहली गड़बड़ी सामने आई. बैंकिंग रजिस्ट्रार को माधव नागरिक बैंक के बारे में लगातार शिकायत मिल रही थी. बैंकिंग रजिस्ट्रार ने इस मामले पर एक डिपार्टमेंटल जांच बैठाई. जांच करने का जिम्मा दिया गया अनिल गर्ग को. गर्ग 2 अप्रैल 2001 को जांच के लिए सिरोही पहुंचे. वो कुल चार दिन वहां ठहरे. जांच के दूसरे दिन ही समझ में आ गया कि यह जांच आसान नहीं होने वाली है. वो सिरोही के सर्किट हाउस में रुके हुए थे. दूसरे दिन जैसे ही वो जांच के लिए निकले पीछे से उनका सारा सामान निकालकर कमरे से बाहर रख दिया गया और रिकॉर्ड में रूम को खाली दिखा दिया गया. चीजें यहीं नहीं रुकी. उनके पीछे आदमी तैनात किए गए. बस स्टैंड और रेलवे स्टेशन पर मुकेश मोदी के इशारे पर गुंडे खड़े किए गए. गर्ग के सामने 20 लाख की रिश्वत का ऑफर भी रखा गया लेकिन उन्होंने इसे स्वीकार नहीं किया. गर्ग ने अपनी अंतरिम रिपोर्ट में माधव नागरिक बैंक के भीतर चल रहे बड़े गड़बड़झाले का पर्दाफाश किया. गर्ग ने अपनी जांच में कई स्तर पर गड़बड़ी पाई.
1. माधव नागरिक बैंक की ऋण देने की कोई लिखित पॉलिसी नहीं थी. जबकि RBI के निर्देशों के अनुसार ऐसा होना जरुरी था.
2. कई खातों में क्रेडिट लिमिट बढ़ाने के लिए संदिग्ध लेन-देन हुआ था. मसलन रिद्धि-सिद्धि वाइन्स की मालकिन इंदु टांक के खाते में 23 मार्च 2001 के दिन 2 करोड़ दस लाख जमा करवाए गए. फिर उस रकम से उदयपुर के आबकारी विभाग के नाम 11 अलग-अलग रकम के ड्राफ्ट बनवाए गए. इसके तीन दिन बाद इन ड्राफ्ट्स को कैंसिल करवा लिया गया और नकद रकम खाते से निकाल ली गई.
3. कई खाताधारकों की क्रेडिट लिमिट समय-समय पर बढ़ाई गई.
4. ऋण लेने के लिए जो जमीन के कागजात जमा करवाए गए थे वो फर्जी थे.
5. RBI के नियमों के मुताबिक ऋण लेने के लिए आपको कम से कम डेढ़ गुना कीमत की चीज रेहन पर रखनी होती है. 14 में 12 खाताधारकों ने जमीन गिरवी रखकर लोन लिया था. माधव नागरिक बैंक ने इन जमीनों की कीमत बाजार भाव से कहीं ज्यादा लगाई ताकि ज्यादा से ज्यादा लोन दिया जा सके.
2. कई खातों में क्रेडिट लिमिट बढ़ाने के लिए संदिग्ध लेन-देन हुआ था. मसलन रिद्धि-सिद्धि वाइन्स की मालकिन इंदु टांक के खाते में 23 मार्च 2001 के दिन 2 करोड़ दस लाख जमा करवाए गए. फिर उस रकम से उदयपुर के आबकारी विभाग के नाम 11 अलग-अलग रकम के ड्राफ्ट बनवाए गए. इसके तीन दिन बाद इन ड्राफ्ट्स को कैंसिल करवा लिया गया और नकद रकम खाते से निकाल ली गई.
3. कई खाताधारकों की क्रेडिट लिमिट समय-समय पर बढ़ाई गई.
4. ऋण लेने के लिए जो जमीन के कागजात जमा करवाए गए थे वो फर्जी थे.
5. RBI के नियमों के मुताबिक ऋण लेने के लिए आपको कम से कम डेढ़ गुना कीमत की चीज रेहन पर रखनी होती है. 14 में 12 खाताधारकों ने जमीन गिरवी रखकर लोन लिया था. माधव नागरिक बैंक ने इन जमीनों की कीमत बाजार भाव से कहीं ज्यादा लगाई ताकि ज्यादा से ज्यादा लोन दिया जा सके.
अनिल गर्ग ने अपनी जांच रिपोर्ट में 14 ऐसे खाताधारकों के नाम लिखे जिन्हें बैंकिंग के नियमों को ताक पर रखकर ऋण दिया गया. ये सभी शराब के व्यवसाय से जुड़े हुए लोग थे. इन सब लोगों को 8 करोड़ 60 लाख से ज्यादा का ऋण दिया गया था. जिसमें क्रेडिट लिमिट को समय-समय पर बढाया गया था. गर्ग ने अपनी रिपोर्ट में विस्तृत जांच करवाने की बात कही थी लेकिन यह रिपोर्ट दबा दी गई. अनिल गर्ग कहते हैं-
मेरे पास इतने प्रलोभन आए लेकिन मैंने पूरी ईमानदारी से जांच की. क्योंकि इसमें आम आदमी के मेहनत का पैसा लगा हुआ था. विभाग ने मेरी जांच की सराहना भी की लेकिन कार्रवाई के नाम पर कुछ नहीं किया. बाद में यह रिपोर्ट मीडिया में लीक हो गई. काफी हंगामा भी हुआ. इसके तुरंत बाद मुकेश मोदी ने माधव नागरिक बैंक को मल्टी स्टेट को-ऑपरेटिव के तौर पर रजिस्टर करवा लिया और अहमदाबाद को अपना मुख्यालय बना लिया. अगर उस समय इन पर ठीक से कार्रवाई हो जाती तो शायद आज 20 लाख लोग धोखाधड़ी से बच जाते.
मुकेश मोदी इस जांच रिपोर्ट को दबाने में कामयाब रहे. इधर संघ का समर्थन भी उन्हें मिलता रहा. समाज में अपनी छवि चमकाने के लिए हल्लाबोल खर्च भी कर रहे थे. गुजरात भूकंप के समय माधव नागरिक बैंक ने 15 लाख रूपए का चंदा दिया था. 2000 के साल में मुकेश मोदी के भाई वीरेंद्र मोदी नगर पालिका अध्यक्ष बन गए. अब बैंकिंग सेक्टर के साथ-साथ जमीन और रियल स्टेट में भी मुकेश मोदी की दखल बढ़ गई. इसने मुकेश मोदी को पैसा पैदा करने का सुनहरा अवसर दिया. जमीनों पर अवैध तरीके से कब्जा और फिर उन जमीनों पर लोन उठाकर उन्होंने इस दौर में काफी पैसा बनाया. मुकेश को यहां से सत्ता में रहने के फायदे समझ में आने लगे. 2004 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी का टिकट लेने के लिए उसने पूरा जोर लगा दिया. उस समय मुकेश मोदी के करीबी रहे एक आदमी ने नाम ना बताने की शर्त पर कहा,
मुकेश मोदी ने संघ के साथ अपने रिश्तों का फायदा लेते हुए बीजेपी में अपनी स्थिति मजबूत कर ली. 2004 के चुनाव में वीरेंद्र मोदी की टिकट लगभग तय हो चुकी थी, लेकिन अभी के मौजूदा सांसद देवजी पटेल ने माधव नागरिक बैंक में चल रही वित्तीय गड़बड़ी के बारे में शीर्ष नेतृत्व को सारी जानकारी दे दी. इसके चलते वीरेंद्र मोदी का टिकट कट गया और मुकेश मोदी हाथ मलते रह गए.
# अंधा बांटे रेवड़ी,फिर-फिर अपने को देय
एक तरफ़ मुकेश मोदी राजनीति में अपना हाथ आजमा रहे थे और दूसरी तरफ ASSC का कारोबार लगातार बढ़ रहा था. आदर्श को-ऑपरेटिव बैंक पर भी इस परिवार का एकाधिकार बना हुआ था. 2009 में आदर्श को-ऑपरेटिव बैंक ने गुजरात के घाटे में चल रहे दो सहकारी बैंकों का अधिग्रहण कर लिया. पहला था ‘डीसा नागरिक सहकारी बैंक’ और दूसरा था सुरेन्द्र नगर का ‘मर्केंटाइल सहकारी बैंक’. इससे आदर्श क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसायटी को गुजरात में अपना कारोबार मजबूती से करने का मौक़ा मिल गया.
ASSC के पर्याप्त विस्तार के बाद शेल कंपनी या फर्जी कम्पनी बनाने का खेल शुरू हुआ. गुड़गांव में एक पता है ‘शॉप नम्बर G1-116-g सुशांत शॉपिंग आर्केड बिल्डिंग, सुशांत लोक फेज-1, गुरुग्राम, हरियाणा-122002’. इस जगह पर मुकेश मोदी, उसके परिवार के सदस्यों और सहयोगियों के नाम पर कुल 33 कम्पनियां रजिस्टर्ड हैं. जबकि यह महज 12*15 की एक छोटी सी दुकान है. जब पुलिस ने इस पते पर छापा मारा तो उनकि मुलाकात बंगाल के रहने वाले 21 साल के नौजवान मोतीउल मलिक से हुई. मोतीउल ने अपने बयान में बताया कि उसका काम सुबह 10 से 6 के बीच इस दुकान पर बैठना है. वो इस पते पर आने वाली सारी डाक इकठ्ठा करके गुरुग्राम स्थित दूसरे दफ्तर में पहुंचा देता था. इस दुकान के मालिक के बारे में तफ्तीश करने पर पता लगा कि इस दुकान की मालकिन प्रियंका मोदी हैं जोकि मुकेश मोदी की बेटी हैं.
आदर्श फ्रॉड की जड़, मोदी वृक्ष |
मल्टी स्टेट को-ऑपरेटिव सोसायटी की धारा 25 कहती है कि कोई भी सहकारी समिति सिर्फ और सिर्फ अपने सदस्य को लोन दे सकती है. किसी भी संस्था को ऋण नहीं दे सकती. इस नियम को ताक पर रखते हुए इन 187 फर्जी कम्पनियों को कुल 12, 414 करोड़ रूपए का लोन दिया गया.
कहानी यहीं खत्म नहीं हुई. ASSC अपने इन्वेस्टमेंट एडवाईजर को कुल इन्वेस्टमेंट का 20 फीसदी हिस्सा कमीशन में देती है. यह बाजार में मौजूद दूसरी लोन देने वाली संस्थाओं से कई गुना ज्यादा है. ASSC की बैलेंस शीट दिखाती है कि पिछले तीन साल में सबसे ज्यादा कमीशन महावीर कंसल्टेंसी नाम की एक फर्म को गया है जिसका ब्यौरा कुछ इस तरह से है-
2015-16 : 59,36,33053 (उन्सठ करोड़ छत्तीस लाख तैंतीस हज़ार तिरपन रूपये)
2016-17 : 1946935781 (एक अरब चौरानबे करोड़ उनहत्तर लाख पैंतीस हज़ार सात सौ इक्यासी रूपए)
2017-18 : 4066800113 (चार अरब छः करोड़ अडसठ लाख एक सौ तेरह रूपए)
2016-17 : 1946935781 (एक अरब चौरानबे करोड़ उनहत्तर लाख पैंतीस हज़ार सात सौ इक्यासी रूपए)
2017-18 : 4066800113 (चार अरब छः करोड़ अडसठ लाख एक सौ तेरह रूपए)
कुल : 6607368948 ( छः अरब साठ करोड़ तिहत्तर लाख अडसठ हज़ार नौ सौ अड़तालीस रूपए )
माने कमीशन के नाम पर एक फर्म ने तीन साल में 660 करोड़ से ज्यादा रूपए कमाए. यह कंसल्टेंसी के क्षेत्र में नया कीर्तिमान होना चाहिए. लेकिन ऐसा नहीं है. जब इस फर्म की डिटेल निकाली गई तो पता लगा कि यह भी सुशांत लोक फेज-1 की उसी 12*15 की दुकान के पते पर रजिस्टर है. इस फर्म को दो साझीदार चलाते हैं. पहले हैं वैभव लोढ़ा जो कि रिश्ते में मुकेश मोदी के दामाद लगते हैं. दूसरी साझीदार हैं मीनाक्षी मोदी जोकि मुकेश मोदी की बेगम साहिबा हैं.
इस घोटाले के सामने आने के बाद मुकेश मोदी के बेटे राहुल मोदी की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ एक फोटो भी खूब वायरल हो रही है. इस फोटो में राहुल प्रधानमंत्री मोदी के साथ बातचीत करते दिखाई दे रहे हैं. मुकेश मोदी और उनके परिवार की संघ और बीजेपी से नजदीकी छुपी हुई नहीं है. 2014 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले पूरे सिरोही शहर में मुकेश मोदी के पोस्टर और होर्डिंग लगे हुए थे.सूबे की राजनीति को करीब से देखने वाले लोग बताते हैं 2014 में मुकेश मोदी को बीजेपी का टिकट मिलना लगभग तय था. लेकिन देवजी पटेल ने 2004 में चला दांव एक बार फिर से दोहरा दिया. उन्होंने 2010 में मुकेश मोदी के खिलाफ हुई आयकर विभाग की जांच का हवाला दिया. 2008 के विधानसभा चुनाव में मुकेश मोदी ने बीजेपी की प्रत्याशी तारा भंडारी के खिलाफ चुनाव लड़ रहे कांग्रेस के संयम लोढ़ा को अपना समर्थन दिया था. देवजी पटेल ने इसे भी मुकेश मोदी के खिलाफ हथियार की तरह इस्तेमाल किया. लिहाजा मुकेश मोदी को हाथ मलते रहना पड़ गया.
राहुल मोदी की नरेंद्र मोदी के साथ वायरल हुई तस्वीर, जिसने बहुतों को बहुत कुछ कहने सुनने पर मजबूर किया |
ख़बर सौजन्य - दी ललनटॉप के लिए विनय सुल्तान
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