‘द गार्डियन’ की रिपोर्ट के अनुसार सोमालिया की लड़कियों के ख़तने (फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन) के मामले इस लॉकडाउन के दौरान बेतहाशा बढ़ गए हैं. क्योंकि लॉकडाउन की वजह से वो घर पर ही रह रही हैं. और खतना करने वाले लगातार घर-घर जाकर पूछ रहे हैं, कि क्या उनके घर में कोई ऐसी लड़की है जिसका ख़तना किया जा सके? ऐसे में इस खतरनाक प्रथा से बचना उनके लिए और भी मुश्किल हो गया है.
इस खबर पर आगे बढ़ने से पहले थोड़ा सा बैकग्राउंड समझ लीजिए.
सोमालिया अफ्रीका महाद्वीप में एक देश है. इसके आस-पास केन्या और इथियोपिया हैं. यहां की जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा इस्लाम धर्म को मानता है. 2005 से लेकर 2012 के बीच यहां के पाइरेट (समुद्री डाकू) लगातार ख़बरों में बने हुए थे. अंतरराष्ट्रीय समुद्री फोर्सेज ने साथ मिलकर उन्हें कंट्रोल करने की कोशिशें कीं जिससे इनका ख़तरा थोड़ा कम हुआ. यहां पर अल शबाब नाम का इस्लामिक मिलिटेंट समूह एक्टिव है, जिसकी वजह से भी सोमालिया ख़बरों में बना रहता है. इस देश की 98 फीसद लड़कियों/महिलाओं का खतना किया जा चुका है.
फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन क्या है?
मुस्लिम और यहूदी समुदाय में बचपन में ही लड़को के लिंग के आगे की खाल काट दी जाती है. पर यह तो हुई लड़कों की बात. लड़कियों में उनका क्लिटरिस काटा जाता है. यह एक ऐसा अंग है जिसके बारे में लोगों को बहुत ही कम जानकारी है. यहां तक कि क्लिटरिस के लिए आम भाषा में कोई शब्द ही नहीं है. हां, संस्कृत में इसे भग्न-शिश्न कहते हैं. यह खाल का एक छोटा सा टुकड़ा होता है जो लड़कियों के वल्वा (वजाइना के लिप्स यानी बाहरी भाग कहते हैं) के ठीक ऊपर होता है.
बात सोमालिया की.
UNFPA के एक अनुमान के अनुसार इस साल लगभग तीन लाख सोमालियन लड़कियों का ख़तना किया जाएगा. मामलों में बढ़ोतरी इसलिए भी देखी जा रही है क्योंकि हाल में रमजान का महीना चल रहा था. ये ख़तना करने का पारम्परिक समय माना जाता है. यही नहीं, आने वाले दस सालों में पूरी दुनिया में करीब बीस लाख लड़कियों का ख़तना किए जाने की आशंका है. क्योंकि हाल में फैली COVID-19 महामारी की वजह से इस प्रथा को रोकने के लिए वैश्विक स्तर पर किए जा रहे प्रयास धीमे पड़ रहे हैं, और आगे भी हालात ऐसे ही बने रह सकते हैं.
सादिया एलिन. सोमालिया में काम करती हैं. प्लैन इंटरनेशनल नाम के एक NGO की हेड हैं. ये संगठन 71 देशों में बच्चों की सुरक्षा और उनके अधिकारों के लिए काम करता है. उनके अनुसार परिवार लॉकडाउन के समय का इस्तेमाल कर रहे हैं, अपने लड़कियों का ख़तना कराने के लिए. ऐसा इसलिए क्योंकि ख़तने के बाद ठीक होने में लड़कियों को काफी समय लगता है. चूंकि अभी उन्हें स्कूल नहीं जाना, तो उन्हें जबरन घर पर रखा जा सकता है. जो लोग ख़तना करते हैं, वो लोग भी अपना बिजनेस बढ़ाने के लिए घर-घर जाकर पूछ रहे हैं.
ख़तने के क्या नुकसान हैं?
ख़तना काफ़ी छोटी उम्र में ही हो जाता है. इस वजह से छोटी-छोटी बच्चियां महीनों तक दर्द से तड़पती रहती हैं.डॉ. माला खन्ना एक स्त्रीरोग विशेषज्ञ हैं. दिल्ली में प्रैक्टिस करती हैं. उन्होंने बताया कि ख़तने की वजह से पेशाब करने में बहुत तकलीफ होती है. अलग-अलग प्रकार के इन्फेक्शन हो जाते है. सिस्ट यानी गांठें हो जाती हैं. यहां तक कि जब वो बच्चे को जन्म देने वाली होती हैं तो उन्हें काफी गंभीर दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.
अब जब इस प्रथा के इतने नुकसान हैं, तो इसे करते ही क्यों है?
वजह सुनकर आपको और भी अजीब लगेगा. ये माना जाता है कि अगर लड़कियों का क्लिटरिस काट दिया जाए तो वो सेक्सुअली एक्साइट नहीं होगी. शादी से पहले उनका सेक्स करने का मन नहीं करेगा. वो वर्जिन और ‘साफ़’ रहेंगी.
क्या ऐसा कुछ अपने देश में भी होता है?
भारत में एक कम्युनिटी है दाऊदी बोहरा. यह शिया मुस्लिम समुदाय का एक हिस्सा है. इनमें लड़कियों का ख़तना होता है. इस समुदाय की बड़ी-बूढ़ी औरतें क्लिटरिस को ‘हराम की बोटी’ कहती हैं. 2017 में एक अंग्रेजी अखबार ने ऑनलाइन सर्वे किया था. उसके मुताबिक इस कम्युनिटी की 98% औरतों ने माना था कि उनका ख़तना हुआ है. और 81% औरतों ने कहा था कि ये बंद होना चाहिए.
एक महिला हैं मासूमा रनाल्वी. उन्होंने महिलाओं के ख़तने के खिलाफ एक कैंपेन स्टार्ट किया था. कुछ वक़्त पहले, मासूमा ने प्रधामंत्री श्री नरेन्द्र मोदी को इसके बारे में एक चिट्ठी भी लिखी थी. वो चाहती थीं कि पीएम मोदी यह प्रथा ख़त्म करवाने में महिलाओं की मदद करें.
कानून क्या कहता है?
इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में भी PIL (जनहित याचिका) दाखिल हुई थी, जुलाई 2018 में. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने मौलिक अधिकारों का ज़िक्र करते हुए कहा कि किसी भी महिला का ख़तना करना महिलाओं के मौलिक अधिकारों का हनन है. कोर्ट ने आर्टिकल 15 (जाति, धर्म, लिंग के आधार पर भेदभाव पर रोक) के बारे में बताते हुए कहा कि किसी भी व्यक्ति के शरीर पर उसका अपना अधिकार है. खतना प्रथा के खिलाफ और भी कई लोगों ने पीआईएल दाखिल की है. सरकार की तरफ से अटॉर्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल ने कहा कि सरकार ‘फीमेल जेनेटल म्यूटिलेशन’ के खिलाफ दर्ज़ हुए पीआईएल के समर्थन में है. 42 देशों में इसे प्रतिबंधित कर दिया गया है. जिनमें से 27 देश अफ्रीका के हैं. सुप्रीम कोर्ट की बेंच में न्यायाधीश ए.एम. खानविल्कर, डी. वाय. चंद्रचूड़ और चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने अपनी राय देते हुए कहा था-
‘ख़तना कैसे किया जाता है इससे फर्क नहीं पड़ता. मुद्दा ये है कि ये औरतों के मौलिक अधिकारों का हनन है. खासकर आर्टिकल 15 का. ख़तने पर रोक लगाना ज़रूरी है ताकि सुनिश्चित हो सके कि आपके शरीर पर केवल आपका हक़ है. संविधान दोनों ही जेंडर के प्रति संवेदनशील है. ऐसी प्रथा जो औरतों को केवल आदमियों के भोग की वस्तु बनाती हो वो संवैधानिक तौर पर ग़लत है.’
इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में अभी भी सुनवाई चल रही है. दूसरे भी कई देश हैं जहां ये प्रथा चलती है. वहां भी मानवाधिकार के लिए काम करने वाले संगठन इसके विरोध में लगातार कैम्पेन चला रहे हैं. कुछ को सफ़लता भी मिली है. हाल में ही खबर आई थी कि सूडान में FGM को अब अपराध की श्रेणी में रखा गया है. दंड के तौर पर तीन साल की सजा का प्रावधान किया गया है.
ख़बर सौजन्य - Odd Nari And The LallaTop
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